पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/१८३

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२८ ] हिंदुई साहित्य का इतिहास प्रस्तुत कबीरछत कही जाने वाली रचनाओं की लम्बी सूची में भी, जिसे मैंने ऊपर उद्धृत किया है, नहीं है । । २‘मूल पंसी' (Panci) , अर्थात् मूल पुस्तक', रचना जिसकी एक हस्तलिखित प्रति, पी० मारकस तुम्वा ( P. Marcus . Tumba ) द्वारा इटैलियन भाषा में अनुवाद सहितबोर्जिया (Borgia ) संग्रह में पाई जाती है । अनुवाद ‘मैं द लौरिफं। ( Miens de 17 Orient ) की तीसरी जिल्द में प्रकाशित हुआ। है । शायद यह १२५५ (१८३६-१८४० ) में बरेली से मुद्रित मूल शांति’ हो । पीः मारकस आय तुम्बा ( P. Marcus a Tumba ) का . पी० पोलाँ द मैं बाoलेमी ( P. Paulin de Saint-barth6lemy ) द्वारा उद्घत, इन संप्रदाय वालों के सम्बन्ध में जो कुछ कहना है यह। जनरल हैरिओट (Harriot ) द्वारा अपने मेम्बार सूर लै कबीर पंथी' ( Memoire Sur les Kabirpathi, कबीरपंथियों का विवरण ) में दिए उनके ( कबीरपंथियों के ) सम्बन्ध में प्रकट किए गए विचार से साम्य रखता है । ( हैरिओट ने ) उसमें उन्हें विशुद्ध ईश्वरवादियों के रूप में चित्रित किया है । कबीर ब्राह्मण ( धर्मावलंबी ) भारत के लिए लगभग वैसे ही सुधारक थे जिस प्रकार बहुत दिनों बाद मुस्लिम भारत के लिए सैयद अहमद हुए। उन्होंने पूर्ण सुधार का उपदेश दिया और उनका प्रयास सफल भी हुआ, क्योंकि अपने सरल व्यवहार और सदाचरण के लिए प्रसिद्ध कवीरपंथी अब भी बंगाल, बिहार. मालवा आवथ आर प्रान्तों में एक बहुत बड़ी संख्या में पाए जाते हैं । 3 औी बिल्लूसन का विचार है कि इसे भूलपंथ पढ़ना चाहिए । २ जे० लौंग'डेसक्रिप्टिव , १८६३४० ३३ 3 "एक्वितोक' ( Journal Asiatique ) , फ़रवरी१८३२ का अंक