पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/१८५

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३० ? हिंदुई साहित्य का इतिहास यह शरीर कभी ज्ञान प्राप्त न करेगा : बह लोगों के पास , उनके निकट है, वे उसे खोजते नहींवरन वे कहते हैं : वह दूर है। सब ओर से वे मिथ्या से परिपूर्ण हैं...... है मूर्स ! इस मानव शरी, जिसमें चिन्ताएँ और बुरी तृष्णाएँ हैं, के मोह को जला डाल 1 प्रासाद बिना नींव के बना हुआ है ; मैं कहता , बचनहीं तो तू दत्र जायेगा । क्या तू ब्राह्मणों की धोखाधड़े की ओर ध्यान दे सकता है ? बिना हर का ज्ञान प्राप्त किएवे नाव गहरे में छोड़ देते हैं । ब्रह्मा की भावना प्राप्त किए बिना क्या कोई ब्राह्माण हो सकता है ?' कबीरदास' 'ज्ञान समाज झ।न की सभाहिन्दी में शिक्षाप्रद पाठ, : फ़ारसी अक्षरों में, के रचयिता, लाहौर, १८६६, ७०० अठपेजी ठ। करीम बख्श’ मलधी मुहम्मद ) ने प्रकाशित किए हैं। : ५- ( उर्दू में रचनाएँ ) : x ६. ‘दायरा इ इल्म' ( १८४० संस्करण ) ---- ‘‘और उसे विद्या चक्र ’ शीर्षक के अंतर्गतजो उर्दू " शीर्षक का अनुवाद है, हिन्दी, नागरी , में प्रकाशित किया है । १ मा० कर्वीर का दास २ फा० अ• दावान् ( ईवर ) का दिया हुआ'