पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/१९२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

कृष्णदास कवि [ ३७ १७१३ में लिखित टीका' के रचयिता हैं और भारत में जिसका एक संस्करण १८३ में प्रकाशित हुआ है । यह विश्वास किया जाता है कि उन्होंने पाठ शुद्ध किया । ऐसा प्रतीत होता है कि कृष्णदास ने भागवत के दशम स्कंध (‘श्री भागवत दशम स्कंध) के हिन्दुई रूपान्तर की रचना की जिसकी एक प्रति कलकते की एशियाटिक सोसायटी के पुस्तकालय में है । मेरे विचार से ये वही कृष्ण दास हैं जिन्होंने ‘असर गीत 3 या भंवरा के गीत (नामक) वॉर्ड’ द्वारा बुंदेलखण्ड की बोली में लिखी बतलाई गई रचना का निर्माण किया। हिन्दुई में लिखी गई तथा प्रेम सागर’ नामक कृष्ण की कथा में एक अध्याय है जिसका यही शीर्षक है । ऊधो, जिसका नाम मधुकर ( भंवरा) भी है, का संदेश इस अध्याय का विषय है। कृष्ण उन्हें अपने विरह में पीड़ित गोपियों के पास भेजते हैं उनमें से एक, संदेशवाहक के नाम की ओर संकेत करफूल पर बैठी हुई मक्खी से प्रश्न करती है, और उसके लिए इस भाषा का प्रयोग करती है : है मधुकर ! तुमने कृष्ण के चरणकमलों का रस ग्रहण किया है, इसीलिए तुम मधुकर ( मधु उत्पन्न करने वाले ) कहाते हो |-- क्योंकि तुम चतुरई के मित्र हो, कृष्ण ने तुम्हें अपना दूत चुना है । हमारे पैर छूते समय सँभले रहना; जाम रखो कि हम भूली नहीं हैं। १ 'एशियाटिक रिसर्बद्ध, जि० १६, ७ ८ २ मुझे भय है कि कृष्णदास और प्रियादास में कुछ भ्रम न होप्रियादास के संबंध में आगे लेख है और वे भी 'भक्तमाल' की एक टीका और एक ‘भागवत' के रचयिता हैं । 3 ‘भ्रमर गीत--काली मक्खी का गीत, अथवा उत्तम रूप में कहने के लिए कालो मक्खी से संबंधित'। ‘हिन्दुओं का इतिहास आदि, जिर २, ३० ४६१