पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/१९४

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कृष्ण रच ३है. उसको सूचो के लौंग के डेक्रिप्टिव लौग’ में मिलती है , पृgo ७० और १००। कृष्ण राव जो सागर में अँगरेज सरकार के स्कूलों के निरीक्षक और बाद में दमोह में प्रथम श्रेणी के मुंसिफ रह चुके हैं ‘पॉलीग्लौट इंटर लाइनर, बींग द फर्स्ट इन्स्ट्रक्टर इन इंगलिश, हिन्दुईएसीट’ शीर्षक एक रचना के रचयिता हैं, रचना जो १८३४ में कलकत्ते से प्रकाशित हुई है। ।...... ('आईना इ अहले हिन्द' नामक उर्दू रचना )..... इसी लेखक ने कुछ हिन्दुस्तानी कविताएँ लिखी हैं । जिनमें उसने मस्रूर’’ का तखल्लुस अहण किया है । मन्तल ने उनकी एक आध्यात्मिक ग़ज़ल उद्धत की है जिसके मूल की एक अंतिम पंक्ति अत्यन्त सुन्दर है और जिसका अनुवाद यह है ‘जुल्म मुझे अन्दर से उदास बना देता है, यद्यपि वाक् रूप से मेरा उपनाम ‘प्रसन्न । है ।' कृष्ण लाल संपादक हैं: १. 'राधा जी की बारहमासी’ -- राधा के ( क्रीड़ा के ) बारह महीने के, हिन्दी कविता आगरासंवत् १६२१ ( १८६५ ) : छोटे बारहग्रेजी ८ पृष्ठ ; २. रामचन्द्र की बारहमासी -—रा के ( क्रीड़ा के ) बारह महीने के ; संभवतः एक दूसरे शीर्षक के अंतर्गत पहली जैसी रचना। इसके दो संस्करण हैं। मस्रूर-संतुष्ट