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हिंदुई साहित्य का इतिहास
उत्तर : {तला न था तवा नहीं
{जूते का तला नहीं था

उसी विद्वान् ने खुसरो की 'खालिक बारी '–सर्वोच्च उत्पन्न करने वाला– नाम से ज्ञात, क्योंकि इन्हीं शब्दों से रचना प्रारम्भ होती हैं, हिन्दुस्तानी, फारसी और अरबी की पद्यबद्ध शब्दावली का भी उल्लेख किया है। श्री स्प्रेंगर ( Sprenger ) ने उसका एक उदाहरण दिया है और हमें बताया है कि उसकी रचना लगभग दो हजार छंदों में हुई है। यह रचना [१]अत्यन्त प्रसिद्ध है और उसके मेरठ, कानपुर, आगरा लाहौर के अनेक संस्करण हैं। स्कूलों में वह काम में लाई जाती है।

उसी विद्वान् ने उस गजल का पाठ दिया है ( जो उध्दृत हो चुका है)जिसका मैंने अनुवाद किया है, किन्तु जिसमे कुछ अंतर है जो अनुवाद में आए बिना नहीं रहता।

खुश-हाल[२]राय(राजा)

मुहम्मद शाह के राजत्व काल में रहने वाले एक हिन्दू जो अपनी विद्वत्ता और अपने धन के कारण उच्च स्थान ग्रहण करते थे। उनकी अनेक हिन्दी कविताएँ इस बोली के खास छन्दों, जैसे,दोहरा, राग आदि,में लिखी गई हैं।दीवान या इन कविताओं का संग्रह हस्तलिखित रूप में कलकत्ते की एशियाटिक सोसायटी के पुस्तकालय में पाया जाता है, जो पहले फ़ोर्ट विलियम में था। ख़ुशहाल,दिल खुश के, जिन्होंने उर्दू में लिखा है, किन्तु जो अपने पिता की बराबर

  1. आगरे में ११३४ ( १७२१-१७२२ ) में यह लिखो कही गई है, अर्थात स्पष्टतः प्रतिलिपि की गई।
  2. फ़ा०'प्रसन्न',शब्दश:'परिस्थिति की खुशी'।जुका (zuka)इस कवि का केवल संयोगवश उल्लेख किया है,'दिलखुश' पर लेख।