दिया है,[१]और मैंने भी डब्ल्यू० प्राइस के पाठ के आधार पर अपने 'नोटस ऑन दि पॉप्युलर सौंग्स ऑव दि हिन्दूज' के ‘सौंग्स ऑव दि गोपीज' परिच्छेद में एक 'पद' दिया है।
गिरिधर लाल एक ‘श्री भागवत'[२]के रचयिता भी हैं जो मूल से उर्दू में अनूदित हो चुका है और ५८४ पृष्ठो में लाहौर से मुद्रित हुआ है। वे ‘भागवत ' की सर्वोत्तम टीका के रचयिता हैं, रचना जिसके एक संस्करण का उल्लेख बाबू हरिचन्द्र ने किया है; उन्होंने सूरदास के ‘राग' पर भी एक टीका रची है जिसका प्रथम भाग उन्हीं बाबू साहब द्वारा २९ अठपेजी पृष्ठों में ‘सूर शतक' के नाम से प्रकाशित हुआ है, बनारस, १८६९। 'कवि वचन सुधा', सं० ८ में उनकी रचना ‘अमराग बाग’ भी प्रकाशित हुई है; और १८६८ मे पंजाब में प्रकाशित ग्रंथों सूची में 'कृष्ण बलदेव' भी उन्ही की बताई गई है,[३] जिसमें शायद गलती से गिरिधर-दास के स्थान पर गिरधर लिख दिया गया है हर हालत में वह केवल १६-१६ पक्तियों के ८ पृष्ठों में एक छोटी-सी कविता है।
गिलक्राइस्ट द्वारा अपनी ‘हिन्दुस्तानी ग्रैमर ( व्याकरण )पृ०३३५,में उल्लिखित हिन्दुई कधि । वे कवित्त और दोहा के रचयिता हैं। श्री रोमर ( Romer ) के पास एक हस्तलिखित ग्रंथ है जिसमें इस कवि के उतने ही कवित्त और दोहे हैं जितने तुलसीदास,कबीर, आदि के।
ऐसा प्रतीत होता है कि यह वही लेखक है, जिसका ‘गिरिधर'