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गोविंद सिंह

नानक कृत ‘आदि ग्रंथ’ के लिए विशेषतः आधिक प्रयुक्त होता है।एक सूचीपत्र[१]में इस पिछली रचना की दो जिल्दें बताई गई हैं। पहली गुरु नानक, और दूसरी गुरु गोविन्द के नाम से संबंधित है। यह बड़ा ग्रंथ,क्योंकि उसमें एक हजार से भी अधिक चौपेजी पृष्ठ हैं, हिन्दुई पद्य में विभिन्न छन्दों में किन्तु, जैसा कि ‘आदि ग्रंथ ’ में है, पंजाबी या गुरुमुखी अक्षरों में लिखा गया है। 'दसवें पादशाह की ग्रंथ' के सोलह खण्डों में से, छः ,कम-से-कम उनके कुछ भाग, गोविन्द द्वारा लिखे गए हैं : कहा जाता है, अन्य गोविन्द के चार अनुयायियों, जिनमें से केवल श्याम और राम के नाम ज्ञात हैं, द्वारा बोले गए थे [२]

प्रसंगवश मैं इस बात का भी उल्लेख कर देना चाहता हूं कि अँगरेजों द्वारा पंजाब की विजय के बाद सिक्ख संप्रदाय का हास होता हुआ प्रतीत होता है।पंजाबी अपनी प्रारंभिक दीक्षा को भूलते जा रहे हैं, और अन्य भारतवासियों की भाँति ब्राह्मण धर्मा- वलंबी हिन्दू रह जाते हैं।उनमें जो अधिक उत्साही हैं वे बाह्य और भीतरी सुधारों द्वारा जातीय वर्ग से अपने को पृथक् रखते हैं।

'दसवें पादशाह की ग्रन्थ’ के निर्माण का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है:

१.'जप जी',जैसा 'आदि ग्रंथ' मे है;

२.'अकाल स्तुत'–अमरो की प्रशंसा, जिसे प्रातःपढ़ा जाता है;

३.'विचित्र नाटक',यह गोविंद के वंश, उनके सुधारवादी


  1. सी०स्टीवार्ट (C. stewart) द्वारा बेचे जाने वाला, पृ०१०८।
  2. सी०स्टीवार्टद्वारा बेचे जाने वाले सूचीपत्र मे, पृ०१०२,यह रचना दो जिल्दों मे बताई गई है।