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तुलसी-दास।

और उन्होंने अपनी संपत्ति चोरों में बाँट दी, जो शुद्ध होकर उनके शिष्य हो गए।

एक ब्राह्मण की मृत्यु हो गई थी, उसकी स्त्री जब उसके साथ सती होने जा रही थी, तो मार्ग में जाते हुए तुलसी ने उसे देख प्रणाम किया, और वह जो करने जा रही थी उसके मुँह से सुना। उस समय सब कुटुंबी, जो शव के साथ थे, इस स्त्री के विरोधी थे, तुलसी ने हरि की प्रार्थना की; मृत फिर जीवित हो उठा, उनका शिष्य हो गया और अपने घर वापिस गया। बादशाह ने जब यह खबर सुनी तो उसने तुलसी को लेने के लिए एक अहिदी[१] पठाया। तब वे दिल्ली आए और बादशाह के समीप पहुंचे। बादशाह ने अत्यधिक आदर-सत्कार के साथ उन्हें बिठाया और चमत्कार देखने की इच्छा प्रकट की। तुलसी ने उत्तर दिया,‘मैं राम को जानता हूँ,चमत्कार नहीं। बाद शाह ने कहा:'तो राम मुझे दिखाइए।'और ऐसा कह कर उसने उन्हें बंदीगृह में डाल दिया। उस समय उन्होंने हनुमान का आवाहन किया।

तुरंत ही लाखों बानर और रीछ आ गए और घरों की छतों पर चढ़,वे सब प्रकार के उलात करने लगे। उन्होंने जिले का ऊँचा गुम्बद तोड़ डाला,उसमें घुस गए और विध्वंस औौर मृत्यु का वाज़ार गरम हो गया। तब किसी ने बादशाह से कहा: तूने जिन्हें बन्दीग्रह में डाल रखा है वे हनुमान को अपने रक्षक इष्टदेव के रूप में मानते हैं।उन्हें जाने दो,नहीं तो और भी उलात होंगे।’यह बात सुन कर बादशाह दौड़ा गया,वह तुलसी के चरणों पर गिर पड़ा, और उनसे कहा:‘अब किस प्रकार इस आग को दबाया जाए? तुलसी ने उससे कहा :तुम राम के दर्शन करना चाहते थे,अब यह उनकी सेना,अथवा उनका हरावल दस्ता है जो यहाँ पहुँच गया है।

  1. इस शब्द का 'एकेश्वरवादी' अर्थ प्रतीत होता है, तथा यहां पर उसका मतलब एक प्रकार के 'सिपाही' से है।
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