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तुलसी-दास


तुलसीदास कृत ‘रामयण’ के अतिरिक्त इस शीर्षक की अनेक हिन्दी रचनाएँ हैं।अन्य के अतिरिक्त दिल्ली में १७२५ में,मुहम्मद शाह के शासनकाल में प्रतिलिपि की गई एक ईस्ट इंडिया हाउस (ऑफिस) के पुस्तकालय में है;वह फ़ारसी अक्षरों और ग्यारह पंक्तियों के छंदों में है। लेखक अपने को सूरज चन्द कहता प्रतीत होता है।एक उर्दू में अनूदित,अध्यात्म'रामायण’ है,जो १८४५ में दिल्ली से छपी थी। 'रामायण, जो तुलसी-दास की सबसे अधिक लोकप्रिय रचना है, से स्वतंत्र,उनकी और भी रचनाएँ हैं:

१.एक ‘सतसई, विभिन्न विषयों पर सौ छंदों का संग्रह;[१]
२.‘रामगानावली, राम की प्रशंसा में पद्यों की माला। १८५४ में    बम्बई से मुद्रित,चित्रों सहित १८० अठपेजी पृष्ठ;
३.एक ‘गीतावती, नैतिक और धार्मिक उद्देश्य वाली एक
काव्य रचना। मेरे विचार से यह बही रचना है जो रामगानावली है;
 ४.'विनय पत्रिका’,अपने आचरण के ढंग पर एक प्रकार की पद्यात्मक रचना;
५.अपने इष्टदेव और उनकी पत्नी अर्थात् राम और सीता के उपलक्ष्य में अनेक प्रकार के भजन,जैसे राग‘कवित,और 'पद'यह रचना आगरे से प्रकाशित हो चुकी है। 

श्री बिल्सन द्वारा उल्लिखित[२] इन रचनाओं के साथ बॉर्ड जोड़ते हैं:

अठपेजो पृष्ठों का एक संस्करण आगरे से १८६८ में निकला है।    बनारस,१८६५ का एक और संस्करण हैं,जिसके अंत में हनुमान बाहुक'दिया गया है।
  1. प्रतीत होता है,'जनरल कैटैलौग' के एक संकेत के अनुसार इसका शीर्षक'सप्तसती'भी होना चाहिए।
  2. 'एसियाटिक रिसर्चस्', जि०,१६, पृ० ५०