पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/२९

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प्रथम संस्करण (१८३९) की पहली जिल्द की

 
भूमिका

ऐसा प्रतीत होता है कि हमारे सन् की १६वीं शताब्दी से पूर्व भारत की आधुनिक भाषाओं ने सर्वत्र वेदों की पवित्र भाषा का स्थान ग्रहण कर लिया था। भारत के प्राचीन साम्राज्य में जिसका विकास हुआ उसे सामान्यतः 'भाषा' या 'भाखा', और विशेषतः 'हिन्दवी' या 'हिन्दुई' (हिन्दुओं की भाषा), के नाम से पुकारा जाता है। महमूद ग़ज़नवी के आक्रमण के समय इस नवीन भाषा का पूर्ण विकास न हो पाया था। बहुत बाद को, सत्रहवीं शताब्दी के लगभग अंत में, दिल्ली में पठान-वंश की स्थापना के समय, हिन्दुओं और ईरानियों के पारस्परिक सम्बन्धों के फलस्वरूप, मुसलमानों द्वारा विजित नगरों में विजयी और विजित की भाषाओं का एक प्रकार का मिश्रण हुआ। प्रसिद्ध विजेता तैमूर के दिल्ली पर अधिकार प्राप्त कर लेने के समय यह मिश्रण और भी स्थायी हो गया। सेना का बाजार नगर में स्थापित किया जाता था, और जो तातारी शब्द 'उर्दू' द्वारा सम्बोधित होता था, जिसका ठीक-ठीक अर्थ है 'सेना' और 'शिविर'। यहीं पर ख़ास तौर से हिन्दू -मुसलमानों की नई (मिश्रित) भाषा बोली जाती थी; साथ ही उसे सामान्य नाम 'उर्दू भाषा' भी मिला, यद्यपि कविगण उसे 'रेख़ता' (मिश्रित) के नाम से पुकारते हैं। इसी समय के लगभग , भारत के दक्षिण में, नर्मदा के दक्षिण में उत्तरोत्तर स्थापित किए गए विभिन्न राज्यों के शासक मुसलमान-वंशों के अंतर्गत समान भाषा सम्बन्धी घटना घटित हुई; और हिन्दू-मुसलमानों की मिश्रित भाषा ने एक विशेष