पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/३०७

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१५९ | हिंदुई साहित्य का इतिहास की । पीपा ने उनका स्वागत किया ; अपने से अतिरिक्त एक दूसरे मकान में उन्होंने उन्हें ठहरा दिया। उन्होंने यह मकान सीता से साफ़ कराया, और चूल्हा, चौका और बर्तन ठीक कराए। पेड़ की। पतियाँ लेकर उन्होंने पतलें बनाई, तत्पश्चात् विष्णु ने फकीरों के खाने के लिए आवश्यक वस्तुएँ दीं । इसी समय एक हत्यारा उस स्थान पर चाया, जिससे सत्र

लोग भयभीत हो उठे । जिधर से भजनों का स्वर आ रहा था वह

उधर गया, और पीपा के चरणों पर गिरते हुए कहा : 'मैं हत्यारा हैं, मैंने एक गाय का वध किया है , इसलिए मैंने सिर मुड़ाया है, गंगा स्नान किया है । जब आपने खाना पकाया है, तो क्या आपका माई न खाएगा : मेरे ऊपर दया कीजिएमुझे अपनी शरण में लीजिएआाज से मैंने अपनी जाति छोड़ दी है"१ इस प्रकार कोई व्यक्ति आपसे कुछ न कह सकेगा । मेरी आत्मा विश्वास से पूर्ण है । तब गुरु ने डाकू की आत्मा का संशय दूर किया। उन्होंने खड़े दूध में श्राटा, पिघला हुआा मक्खन औौर शकर मिलाई, दूध उन्होंने एक बरतन में भरा और इश्त्यारे को उसे खिलाया, तथा उसकी मंगलकामना की । संतोषी संन्यासियों, साथ ही सपरिवार गाँव के निवासियों ने भी उसे खाया 1 क्षण भर में सब फिर मिल बैठे । पीा ने एक हत्यारे का अपराध क्षमा किंय ; और सघने राम . का नाम लेकर मोक्ष प्राप्त किया । उसमें करोड़ों हत्यारों को नष्ट करने की शक्ति यी ; ऐसा होता क्यों नहीं १ इस राम-भक्ति के प्रचार में पीप संलग्न रहे औौर देश-देश में मनुष्यों को मोक्ष प्रदान किया । १ यह अच्छा अंश है , इससे किसी स्थान पर एच० एन० विल्सन के बथन, कि फकीरों के समाज में जातिभेद नहीं माना जाता, की प्रामाणिकता सिद्ध हो तो है।