पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/३८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
[११
भूमिका

और व्यक्तिगत जीवन से सम्बन्धित विस्तार मुश्किल से मिलते हैं। उनकी रचनाओं के सम्बन्ध में भी लगभग कुछ नहीं कहा गया, इसी प्रकार उनके शीर्षकों के बारे में; हमारी समझ में यह कठिनाई से आता है कि इन कवियों ने अपने अस्थायी पद्यों का संग्रह 'दीवान' में किया है, और इस बात का संकेत केवल इसलिए प्राप्त होता है क्योंकि जिन कवियों ने एक या कई ऐसे संग्रह प्रकाशित किए हैं वे 'दीवान के रचयिता' कहे जाते हैं, जो शीर्षक उन्हें अन्य लेखकों से अलग करता है, और जो 'महा कवि' का समानार्थवाची प्रतीत होता है। इन तज़्‌किरों का ख़ास उपयोग यह है कि जिन कवियों की रचनाएँ यूरोप में अज्ञात हैं उनके उनमें अनेक अवतरण मिल जाते हैं। मूल जीवनी-लेखकों में से मीर एक ऐसे हैं जो उद्धृत पद्यों के सम्बन्ध में कभी-कभी अपना निर्णय देते हैं; वे दूसरों से ली गई बातों और कुछ हद तक अनुपयुक्त और त्रुटिपूर्ण प्रतीत होने वाली अभिव्यंजनाएँ चुनते हैं, और जिस कवि के अवतरण वे उद्धृत करते हैं उनमें किस तरह होना चाहिए था प्रायः यह बताते हैं। इसके अतिरिक्त, यदि विश्वास किया जाय तो ख़ास तौर से उर्दू कवियों से सम्बन्धित जीवनियों में उनका जीवनी ग्रन्थ सबसे अधिक प्राचीन है।[१]

अन्य मूल तज़्‌किरों में से जिन तक मेरी पहुँच हो सकी है अनेक का उल्लेख मेरे प्रस्तुत ग्रन्थ में हुआ है, किन्तु जिनकी एक भी प्रति के यूरोप में होने के सम्बन्ध में मैं नहीं जानता। तो भी दो ऐसे हैं जिनका मैं यहाँ उल्लेख करना चाहता हूँ : वे दोनों सर गोर (Gore) के भाई, सर डब्ल्यू॰ आउज़्‌ले (Ouseley) के सुन्दर संग्रह में हैं। पहला अबुलहसन कृत तज़्‌किरा है; उसका इस संग्रह के मुद्रित सूचीपत्र में नं॰ ३७४ के अन्तर्गत, अकारादि क्रम से रखे गए, हिन्दस्तानी में लिखने वाले कवियों के एक इतिहास रूप में उल्लेख हुया है। नं॰ ३७१ के अन्तर्गत उल्लिखित, दूसरा 'तज़्‌किरा-इ शौअरा-इ जहाँगीर शाही' शीर्षक, अर्थात् सुलतान जहाँगीर


  1. 'निकात उस्‌शौअरा' की भूमिका।