पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/३८८

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राजा ( सहाराज बलवन या बलवन्त सिंह बहादुर ) [ २३३ (१२५२ बंगाली संवत् १८४५ ईसवी सन् ) में पूर्ण हुआ । ‘राग कल्पढ' १८०० पृष्ठों के लगभग बड़े चपेजी पृष्ठों का एक बड़ा प्रन्थ है । जैसा कि उसने भूमिका में बताया है, इन लोकप्रिय गीतों का संग्रह करने के लिए रचयिता ने बाईस वर्ष की अवस्था में यात्रा की थी । यह संग्रह मूल्यवान है, क्योंकि उसमें प्रसिद्ध रचयिताओं की तथा अब तक अज्ञात कविताएँ दी गई हैं । इन्हीं रागसागर - ने नाभाजी कृत ‘भक्तमाल’ का एक संस्करण देने की घोषणा की है 'राग कपटुमकई भागों में विभक्त है । प्रधान सात (भागों) की गणना की जा सकती है : पहले में , जिसमें विभिन्न रागों में कविताएँ हैं , १६४ पृष्ठ हैं मैं दूसरे में, सूरदास कृत संपूर्ण सूर- सागर' है अर जिसमें ६०० से अधिक भ्रष्ट हैं , तीसरे में हिन्दुओं और मुसलमानों की कविताओं के ३४४ पृष्ठ हैं , चौथे में १७६ पृष्ठ में वसंत और होली पर गीत हैं के पाँचवें के दो भागों में, एक में २०८ पृष्ठ ौर दूसरे में १५६ पृष्ठ, भ्रषदों और ख्यालों का संग्रह है : छठे में ग़जलों और रेस्खताओं आदि के ७६ पृष्ठ हैं : अंत में सातवें में भरतरी और गोपीचंद राजाओं के छंदों के २८ पृष्ठ हैं। राजा ( महाराज बलवम या बलवन्त सिंह वहादुर ) बनारस के राजाचेतसिंह बनगौर ( Bango ) के पुत्र और आगरे के निवासी, मिर्जा हातिम अली बेग मुहर के शिष्य एक हिन्दुस्तानी-कवि हैं।......( दीवान )..। वे, टीका और हिन्दी छन्दों की विचित्र तालिका सहित, चित्र चन्द्रिका' - काव्य चित्रों की चन्द्रिका-अथवा छन्दोबद्ध हिन्दी काव्य-शास्त्र के रचयिता भी हैं । इस रचना की एक प्रति मुझे स्वर्गीय मेजर फुलर की कृपा से मिली थी जो रचयिता के चित्र से सुसज्जित, १८५६ आगरे से मुद्रित १२० अठपेजी पृष्ठों का ग्रन्थ है । में