पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/३९७

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२४२ ] हिंदुई साहित्य का इतिहास भ भजनों की रचना की है । देहरादून' में, मंसूरी पहाड़ से नीचे, हिन्दुस्तान की उत्तरी सीमा पर बनी उनकी पुत्र जितनी मुसलमानों द्वारा उतनी ही हिन्दुओं द्वारा समादृत है। जब मुहम्मद शाह गुलाम क्लादिर द्वारा दृष्टि-विहीन हुए, तो वे भाग कर मरइटों की तरफ़ चते गए और देहरादून पहुंचे, जहाँ उन्होंने क्रेन के पास रखी हुई, गुरु राम राउ की चारपाई पर आराम किया । पहली अगस्त, १८४० को. मंसूरी पहाड़ से हिन्दुस्तान आते समय जीवनीलेखक करीम ने यह नगर देखा । उनका कहना है : नगर सुन्दर है, और बह किसी भी अँगरेजी छावनी के बराबर समृद्ध है । यहीं देहरादून में गुरु राम राउ ने अपने दफनाए जाने के लिए बह इमारत बनवाई। थी जिसे हिन्दू समाधि, मुसलमान का ऑरनगर की भाँति, दो पहाड़ों के बीच में स्थित होने के कारण, ‘दून’ - तीचा - कहते हैं । यह समाधि काबा के अनुकरण पर बनाई गई है । इसी इमारत में राम राज दफनाए गए हैं । कत्र के समीप ही बह चारपाई सुरक्षित रखी गई है, जिस पर गुरु जी लेटा करते थे, और जो संघ के गुरु राम रा’ कहा जाता है, और जिसे हिन्दुओं ने एक विशेष ढंग से सजा रखा ,। इस इमारत के बाहर, छत्तीस गज का एक खंभ लगा हुआ है, जिस पर लात" रंग का अंडा उड़ता है। इस संत के भक्तों का विश्वास है कि अंडे की कृपा से सब इच्छाएं पूर्ण होती हैं । वे उसकी पूजा करते हैं और १ इन शवों का ठाकठाक अर्थ है ‘ चे की मन्दर’ ( 12a goe besse ) या ‘छोट मन्दर’ ( petite pagode ) है । २ ठक-ठांक ‘समाधि, जिस शब्द का अर्थ है ‘जोगा की ' । 3 समाधि के लिए अरबी शब्द । वे इस शब्द का अर्थ है ‘से टकॉम, और फलत, ‘चारपाई। । ५ यह रंग इस बात का द्योतक है कि संत शहीद समझा गया है। मेरा ग्रन्थ ‘Memoir on the Musalman Religion in India' देखिए।