पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/४०५

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में २५० ] हिंदुई साहित्य का इतिहास एक संप्रदाय के संस्थापक थे। उनकी हिन्दी कवियों में गणना की जाती है, क्योंकि, वास्तव में, इस भाषा में लिखित आसाधारण कविताओं के लिए लोग उनके ऋणी हैं। कुछ तो सिक्खों के ‘आदि ग्रंथमें हैं, और कुछ बनारस में प्रयुक्त इस संप्रदाय के भजनों और प्रार्थनाओं के संग्रह में हैं ।' इसके अतिरिक्त इस साम्य व्यक्ति के संबंध में भक्त माल’ के लेख में एक अंश पाया जाता है, और जिसका अनुबाद इस प्रकार है : छप्पय संदेह ग्रंथ खंडन निपुण वाणी बिमल रैदास की । सदाचार श्रुतिशास्त्र बचन श्राविरुद्ध उचायो । नीरक्षीर विचरन परमहंसन उर था । भगवत कृगा प्रसाद परम गति हि तन पाई । राज सिंह ासन बैठ ज्ञति परतीति दिखाई । बनम अभिमान तजि’ पद रज दकि जासकी। संदेह ग्रंथ खंडन निपुण वाणी विमल रैदास की । टीका । रामानंद का एक शिष्य ब्रह्मचारी' था । बहू सीधा लेकर भोजन बनाता, श्रीर इसे देवता की मूर्ति के सामने रख देता था। मन्दिर के दरवाजे पर एक बनिया था जिसका एक कमाई के साथ व्यापा रिक संबंध था । यह व्यक्ति निरंतर ब्रह्मचारी से भगवान् के लिए सीधा अंगीकार करने के लिए कहता था ; किन्तु ब्रह्मचारी ने उसकी इस माँग पर कोई ध्यान न दिया । एक दिन घण के कारण ब्रह्मचारी मन्दिर १ एच० एच. ।व , ‘द.श भाटिक रिसन, जि० १६, ३० ८१, जि० १७, १० २२८ २ नबान भारतीय संप्रदायों के गुरु', जैसे रामानंद , दादू, आदि, ने शावश्वमुनि के अनुकरण पर, धर्म के क्षेत्र में सब ब्यतयों की समाभता स्वीकार की है। ३ नवषुव नह्मण विद्यार्थी