पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/४२५

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२० हिंदुई साहित्य का इतिहास जिसका उस लेख में अभी मिर्जायी के लेख में कहूंगा। १७०० संवत् ( १६१३ ई० ) में लिखित यह रचना अधिक प्राचीन तिथियों की हिंदुई रचनाओं की अपेक्षा अधिक व्यवस्थित रूप में संपादित है । जिस बोली में यह लिखी हुई है वह महाभारत दर्पण’ के निकट है । वास्तव में यह अधध मेंजहाँ लाल केवल , रहते थे और जिसके संबंध में उन्होंने अत्यन्त गर्ष प्रकट किया है राम की कथा है । निस्संदेह इस काव्य के प्रभाव के साथ मिले भावों के कारण हिन्दू लोग इस रचना को उपयोगी ज्ञान का सार समझते हैं । इसके अतिरिक्त, जिस बोली में इसकी रचना हुई है। उसमें विभिन्न विषयों का निरूपण रहने के कारण 'अवध बिलास' आस्यन्त महत्वपूर्ण हिन्दुई रचनाओं में से एक है। कलकत्ते की हस्तलिखित प्रति में ६०२ पृष्ठ है, जिसका एक तिहाई भाग दो दो कॉलमों में है । वह सुलिखित है, और किनारे पर की गई शुद्धियों से यह प्रकट होता है कि वह बड़ी होशियारी के साथ दुहराई गई है ।' ३. लाल दास हिन्दी में भारत की बारहमासी'- भारत के बारह महीने के रचयिता हैं, जो राम की कथ’ ( Account of Rama ) के नाम से भी कही गई है , आगरा, १८६४अत्यन्त छोटे १२पेजी ६ पृष्ठ ; इसके अतिरिक्त वे रचयिता हैं। , ४. ‘इन्द्रजाल अकरणम्, या ‘भाष इन्द्रजमल):- तिलिस के चमत्कारों पर पुस्तक-के, जिसकी एक प्रति कलकत्ते की एशिया टिंक सोसायटी के पुस्तकालय में है ; १ इस सूचना के लिए मैं भी पैवो ( Thका हैं, जिन्होंने कलकत्ते Pavie ) झूतश की हस्तलिखित प्रति देखी थी और उसका विश्लेषण किया था। " - अर्थात् संस्कृत ‘इन्द्रजाल’ के विपरीत हिन्दी में इन्द्रजा'