पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/४२६

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कबि लाल [ २७१ ५. ‘गुरुमुखीगुरु के बचन-—के, जिसके कई संस्करण हो चुके , जिनमें से एक लाहौर का है, १८५१ ; ६, अंत में कुछ लोकप्रिय गीतों के ।' यह ले रचक, लल चन्द्रिका’ शीर्षक बिहारी कृत सतसई’ की टीका का रचयिता कधि या कथि लाल ही प्रतीत होता है । कवि लाल ‘लाल चन्द्रिका’-लाल की चन्द्रकिरणें - शीर्षक बिहारी लाल कृत सतसई’ की एक टीका के रचयिता हैं । देवनागरी अक्षरों में पठ सहित, यह टीका २१-२१ पंक्तियों के ३६० बड़े आठवेजी पृष्ठों में पंडित दुर्गाप्रसाद के निरीक्षण में , और बाबू अविनाशी लाल और मुंशी हरबंशलाल के व्यय से, बनारस में, गोपीनाथ के छापे खाने से, १८६४ में मुद्रित हुई है । लाल ( बाबू आविनाशी ) ने हिन्दी में शकुंतला नाटक' का संपादन किया है , १८६४ में बनारस से प्रकाशित११४ अपेजी पृष्ठ । लालच' उपनाम हल बाई, केवल डॉ॰ गिलइट द्वारा आपने ‘हिन्दु स्तानी व्याकरण, पृष्ठ ३३५ में उल्लिखित ( हिन्दुई कधि ), भाग- बत’ के रचयिता हैं, या, उचित रूप में, ‘भागवत पुराण, जिसके - डब्यू प्राइस ने अपने हिन्दुस्तानी सेलेक्शन्स' में, जि० २, ० २५०, प्रथम संस्करण में एक ‘होल’ उद्धृत की हैं । ३ भा० लालच--लोभ