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प्रथम संस्करण की दूसरी जिल्द (१८४७) की
भूमिका

इस इतिहास की पहली जिल्द की भूमिका में, मैंने केवल एक दूसरी और अंतिम जिल्द की घोषणा की थी; किन्तु जीवनी और ग्रंथों-संबंधी मिलीं नवीन सूचनाएँ इतनी प्रचुर हैं कि मुझे इस ग्रंथ के शेष भाग को दो जिल्दों में विभाजित करना पड़ा।

इस समय प्रकाशित होने वाली जिल्द, जिसमें अवतरण और रूपरेखाएँ हैं, के लिए सामग्री का अभाव नहीं रहा; किन्तु उसकी प्रचुरता के अनुरूप दिलचस्पी नहीं रही; क्योंकि हिन्दुई और हिन्दुस्तानी रचनाओं के संबंध में वही कहा जा सकता है जो मार्शल (Martial) ने अपनी हास्योत्पादक छोटी कविताओं के बारे में कहा है :

Sunt bona, sunt quaedam mediocria
Sunt mala plura

मैंने ग्रंथ प्राप्त करने, बहुत-सों को पढ़ने; उनका विश्लेषण करने, उनमें से अनेक का अनुवाद करने में अत्यधिक समय व्यतीत किया है : किन्तु जो अंश मेरे सामने थे, या जिन्हें मैंने तैयार कर लिया था, उनका बहुत बड़ा भाग मुझे छोड़ देना पड़ा, क्योंकि या तो वे हमारे आचार विचारों के अत्यधिक विरुद्ध थे, या क्योंकि उनमें अनैतिक बातों का उल्लेख है या