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भूमिका



मैंने तुलसी-दास कृत 'रामायण' के एक काण्ड का अनुवाद दिया है, यद्यपि मुझे इस काव्य की, जो मुश्किल से समझने में आने वाली हिन्दुई बोली में लिखा गया है, टीका उपलब्ध नहीं हो सकी।

हिन्दुस्तानी रचनाओं के उद्धरणों में, मैंने 'आराइश-इ महफ़िल' से लिए गए उद्धरणों को सबसे अधिक स्थान दिया है, क्योंकि यह रचना भारत के आधुनिक साहित्य की एक प्रमुख रचना है। अन्य के लिए मैंने, अपने को सीमित परिधि तक रखा है। पहली जिल्द में मैं हिन्दुई और हिन्दुस्तानी साहित्य के छोटे-छोटे उदाहरण दे चुका हूँ। इसमें मैंने अधिक विस्तार से दिए हैं, जो पहली जिल्द की भाँति इसमें पहली बार अनूदित हुए हैं; और मुझे प्रसन्नता है कि ये उसी आनन्द के साथ पढ़े जायँगे जिस प्रकार वे पढ़े गए थे जिन्हें मैं पहले 'ज़ूर्ना एसियातीक' (Journal Asiatique) में दे चुका हूँ, उदाहरण के लिए 'गुल ओ बकावली' की रोचक कहानी, 'कुकवियों को नसीहत' शीर्षक सुन्दर व्यंग, कलकत्ते का वर्णन, आदि आदि। मैं अपने अनुवादों द्वारा यह सिद्ध करना चाहता हूँ, कि अब तक अज्ञात ये दोनों साहित्य वास्तविक और विविध प्रकार की दिलचस्पी पैदा करते हैं।

वास्तविक अनुवादों में, पाठ में जो कुछ नहीं है उसे मैंने इटैलिक अक्षरों द्वारा दिखाया है, अर्थात्, वे शब्द जो मूल का अर्थ बताने की दृष्टि से रखे गए हैं; किन्तु रूप-रेखा और स्वतंत्र या संक्षिप्त अनुवाद में, मैंने इस ओर ध्यान नहीं दिया। इस संबंध में मैंने मैस्त्र द सैसी (le Maistre de Sacy) द्वारा, बाइबिल के अनुवाद, और सेल (Sale) द्वारा क़ुरान के अनुवाद में[१] गृहीत सिद्धान्त ग्रहण किया है; और अपने


  1. मेरा संकेत यहाँ मूल संस्करण की ओर है; क्योंकि बाद के संस्करणों में इन भेदों की ओर ध्यान नहीं दिया गया।