पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/५०४

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परिशिष्ठ १ [ ३४8 कें ‘सती होने की रीति हिन्दुओं में अपने पति के साथ भलमनसी और मया के चलन के बाहर है।' डब्ल्यू० चैपलिन द्वारा हिन्दुस्तानो (नागरी अक्षरों ) में लिखित थीसिस में वह ‘प्रीमी ओरिएंटालिस ( Primitiae Orientales),. कलकता, १८७४ शीर्धक ग्रंथ की तीसरी जिल्द में मिलती है । ‘सत्य मुक्त मार्गका संक्षेप' । बार पेजो उन्नीस पृष्ठों की छोटी-सी प्रश्नोतरी । सवाल जवाब' । बच्चों के लाभार्थ बारह पेजी सात पृष्ठों की छोटी-सी प्रश्नोतरी ।

  • ‘सान्ति जिन स्तव' । जि० १७

जैन धर्म-संबंधी भाषा में रचना ( ‘एशि० रिस०९ , , - २४५)।

  • ‘सालभद्र चरित्र’, सालभद्र की कथा ।

जैनकथा श्री विल्सन द्वारा हिस्ट्री व दि रिलीजस सेक्स आव दि ईिःदूज( हिन्दुओं के धार्मिक संप्रदायों का इतिहास ) में उल्लिखित रचना ( ‘शि० रिसe', जि० १७, १० २४५ )।

  • सिंजार सिरोमनी’ ।

भाखा में राधा वलभी संप्रदाय की रचना, जिसके संबंध में प्रोफ़ेसर विल्सन का दिया हु विक्र म (M&nbire) देखा जा ७० १२५ विद्वान ‘ए सकता है ( श० रिस०', ०ि १६, ) । इस के पास इस चना औी नागराक्षरों में एक हस्तलिखित प्रति है । 3 रेंजों में शांषेक इस प्रकार हैं -“Suicide ( The) of the Hindoo Widow , by buming themselves with the Bodies of their deceased Husbands, is a practice repugmant to the natural feelings and inconsistent with moral duty'. - . अनु० ।