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हिंदुई साहित्य का इतिहास


'पद'। इस शब्द का ठीक-ठीक अर्थ है 'पैर', जिसका प्रयोग चौपाई के आधे और 'दोहे' के चौथाई माग के लिए होता है, एक अन्द और फलत: एक गान, एक गीत।

'पहेली', गूढ़ प्रश्न।

'पाल्ना'। इस शब्द का अर्थ है जिसमें बच्चे भुलाए जाते हैं, जो उन गानों को प्रकट करने के लिए भी प्रयुक्त होता है जो बच्चों को भुलाते समय गाए जाते हैं।

'प्रबंन्ध', प्राचीन हिन्दुई गान।

'प्रभाती', एक रागिनी और साधुओं में प्रयुक्त एक कविता का नाम। बीरभान की कविताओं में प्रभातियाँ मिलती हैं।

'बधावा', चार चरणार्द्धो की कविता, जिसका पहला कविता के प्रारंभ और अंत में दुहराया जाता है। यह बधाई का गीत है, जो बच्चों के जन्म, विवाह-संस्कार, आदि के समय सुना जाता है। उसे 'मुबारक बाद' भी कहते हैं, किन्तु यह दूसरा शब्द मुसलमानी है।

'बर्बा', या 'बर्बी', इसी नाम के संगीत-रूप-सम्बन्धी दो चरण की कविता। उसका 'खियाल' नामक प्रकार से संबंध है। उसका एक उदाहरण 'सभा विलास' में पाया जाता है, पृ॰ २३ ।

'बसंत', एक राग या संगीत रूप और एक विशेष प्रकार को कविता का नाम जो इस राग में गाई जाती है। गिलक्राइट[१] और विलर्ड (Willard)[२] ने, सरल व्याख्या सहित, समस्त रागों (प्रधान रूपों) और रागिनियों (गौण रूपों) के नाम दिए हैं। उन्हें जानना और भी आवश्यक है क्योंकि वे विभिन्न रूपों में गाई जाने वाली कविताओं के प्रायः शीर्षक रहते हैं। किन्तु मैंने यहाँ लिखित कविता में अत्यधिक प्रयुक्त होने वाले का उल्लेख किया है।

  1. 'ग्रैमर हिन्दुस्तान' (Gram.Hind.), २६७ तथा बाद के पृष्ठ
  2. 'ऑन दि म्यूज़िक ऑव हिन्दुस्तान', ४९ तथा बाद के पृष्ठ