पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/१०

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विन्सेंट स्मिथ ने लेखक से कहा था कि तुम हिंदू गणों का विस्तारपूर्वक विवेचन करो; और बहुत से मित्रों ने यह अनुरोध किया कि "प्रस्तावना' पुस्तक रूप प्रस्तुत ग्रंथ की रचना प्रकाशित करो। प्रायः उसी समय कलकत्ता विश्वविद्यालय के पोस्ट प्रैजुएट शिक्षण की काउंसिल के सभापति सर आशुतोष मुकर्जी ने उससे कहा था कि प्राचीन भारतीय इतिहास का एक शिक्षा-क्रम प्रस्तुत करो। उन दिनों प्राचीन हिंदू राज्यतंत्र-संबंधी एक विस्तृत ग्रंथ की बहुत बड़ी आवश्यकता समझी जाती थी। सन् १९१७ के अंत में लेखक ने डा० स्मिथ के अनुरोध का पालन करने और उक्त आवश्यक- ता की पूर्ति करने के विचार से प्रस्तावना को दोहराना आरंभ किया। उसी के परिणाम स्वरूप यह ग्रंथ प्रस्तुत हुआ है। अप्रैल १६१८ में दोहराने का काम समाप्त हो गया और इस्त- लिखित प्रति तैयार हो गई। वह प्रति सर प्राशुतोष मुकर्जी को दे दी गई, जिन्होंने इसे कृपापूर्वक विश्वविद्यालय के शिक्षा- क्रम मे रखकर अपने ऊपर इसके प्रकाशन का भार लिया। जब इसके कुछ प्रकरण कंपोज हो गए, तब लेखक को सुचना मिली कि वैज्ञानिक ढंग से साहित्यिक चोरी करने का प्रयत्न हो रहा है उस समय सर प्रकाशन में विलंब आशुतोष के यहॉ से इसकी हस्तलिखित का कारण प्रति चोरी हो गई। जिस संदूक में वह प्रति रखी हुई थी, उसमे से सर आशुतोष की और किसी चीज़ }