पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/११

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वरामद किया है ( ४ ) पर उस गुप्त अालोचक और प्रशंसक ने हाथ नहीं डाला, केवल इसी की प्रति उड़ा ली। सर आशुतोष ने इस बात की सूचना पुलिस को दी। इसका परिणाम यह हुआ कि एक प्रोफेसर ने यह कहकर उन्हें वह प्रति लौटा दी कि इसे मैंने । तीन दिन तक कैद में रहने के बाद प्रति को छुटकारा मिला। लेखक के पास और कोई प्रति नहीं थी; उधर कलकत्ता युनिवर्सिटी प्रेस में प्रकाशन बहुत मंद गति से हो रहा था; और इन मौलिक अन्वेषणों को प्रकाशित कराने के लिये कलकत्ते के कुछ लोगों की बहुत प्रबल कामना थी, इसलिये लेखक ने वह प्रति अपने पास पटने में वापस मँगा ली। उस समय इसे प्रयाग में प्रकाशित करने की व्यवस्था की गई। इसी बीच मे सर शंकरन नैयर ने इस हस्तलिखित प्रति काभारत सरकार के First Despatch on Const ional Reforms (५ मार्च १६१८) वाले नोट में उल्लेख किया और कुछ प्रकरण 'माडर्न रिव्यू', फरवरी १९२०, मे प्रकाशित भी हो गए। जब पूरा पहला भाग कंपोज हो गया, तब प्रयागवाले प्रेस का अँगरेजी विभाग विक गया और हस्तलिखित प्रति फिर वापस आ गई। एक तो किसी “बाहरी' शहर में कोई अच्छा प्रेस नहीं मिलता था; और दूसरे लेखक को अपने पेशे से अवकाश नहीं मिलता था। इन्ही सब कठिनाइयों के कारण पिछली शरद् ऋतु तक इसके प्रकाशन की कोई नई व्यवस्था न हो सकी।