पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/१०३

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( ७२ ) ५. जब तक सब भिक्षु लोग उस प्रलोभन के फेर में नहीं पड़ेंगे......... ६. जब तक सब भिक्षु लोग एकांतवास में ही सुख मानेंगे; ७ जब तक सब भिक्षु लोग अपने मनों को इस प्रकार संस्कृत करेंगे.. .तब तक कभी यह नहीं समझना चाहिए कि भिक्षुओं का पतन होगा, बल्कि यही समझना चाहिए कि निरंतर उनकी उन्नति होती रहेगी। ४४. बौद्ध संघ के जन्म का इतिहास सारे संसार के त्यागियों के संप्रदायों के जन्म का इतिहास है। इसलिये भारतीय प्रजातंत्र के संघटनात्मक गर्भ से बुद्ध के धार्मिक संघ के जन्म का इतिहास केवल इस देशवालों के लिये ही नहीं बल्कि शेष सारे संसार के लिये भी विशेष मनोरंजक होगा। इसमे संदेह नहीं कि बुद्ध का यह काम अनुकरण मात्र अथवा यों कहना चाहिए कि ऋण स्वरूप लिया हुआ था। पर साथ ही इसमें भी संदेह नहीं कि इसके मूल में एक मौलिक विचार था जिसकी कल्पना केवल बहुत बड़ा विचार- शील या मनस्वी ही कर सकता था। साधारण आदमी इस प्रकार के अनुकरण की कल्पना भी नहीं कर सकते थे। इसकी मौलिकता इस बात में थी कि उन्होंने एक राजनीतिक संस्था के संघटन को धार्मिक संस्था के लिये परिवर्तित किया था और इस प्रकार उस धर्म को स्थायी रूप देने के उद्देश्य से राजनीतिक ढंग के संघटन की कल्पना की थी।