पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/१०४

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( ७३ ) ६४५. जिन प्रजातंत्रों ने बौद्ध साहित्य का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया था, वे वही प्रजातंत्र थे जिनके मध्य मे बुद्ध प्रारंभ से थे और जीवन व्यतीत करते थे। उल्लिखित प्रजातंत्र वे प्रजातंत्र पूर्व में कौशल और कौशांबी के राज्यों तक तथा पश्चिम में अंग राज्य तक फैले हुए थे। अर्थात् उनका विस्तार गोरखपुर और बलिया के जिलों से भागल- पुर जिले तक और मगध के उत्तर तथा हिमालय के दक्षिण तक था। वे सब प्रजातंत्र राज्य इस प्रकार थे- (क) शाक्यों का राज्य जिनकी राजधानी गोरखपुर जिले के कपिलवस्तु नामक नगर मे थी और जिसमे उनके बहुत ही समीपवर्ती राज्य भी सम्मिलित थे। (ख) कोलियों का रामग्राम । (ग) लिच्छवियों का राज्य जिनकी राजधानी वैशाली मे थी, जिसे आजकल बसाढ़ कहते हैं और जो मुजफ्फरपुर जिले मे है। (घ) विदेहों का राज्य जिनकी राजधानी मिथिला (जिला दरभंगा) मे थी। ये अंतिम दोनों मिलकर वृजी अथवा वजी कहलाते थे* | (ङ) मल्लो का राज्य जो बहुत दूर तक विस्तृत था और जो दक्षिण में शाक्यों तथा वृजियो के राज्य तक चला गया था,

मि० पांडेय ने मुझसे कहा है कि थारू लोग चंपारन के आर्य

निवासियों को बजी कहा करते है। [देखो Journal of the B. and O. Research Society, भाग ६, पृ० २६१.]