पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/१०५

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( ७४ ) अर्थात् जो आधुनिक गोरखपुर जिले से पटने तक चला गया था और जो दो भागों में विभक्त था। इनमें से एक की राज- धानी कुशीनगर (कुसिनारा) तथा दूसरे की पावा में थी। (च) पिप्पलीवन के मोरिय तथा (छ) अल्लकप्प के वुली जो दोनों छोटे छोटे वर्गअथवा समाज थे। इन दोनों ने बौद्ध धर्म के इतिहास में कोई विशेष महत्वपूर्ण अथवा उल्लेख योग्य कार्य नहीं किया था। ये दोनों कुशीनगर के मल्लो के पड़ोसी थे। परंतु उनकी ठीक ठीक सीमायों का अभी तक पता नहीं चला है। और (ज) भग्ग (भर्ग) जो कौशांबी के वत्सों के राज्य के पड़ोसी थे। राजनीतिक दृष्टि से इन सब मे से वृजी और मल्ल सब से अधिक महत्व के थे। वृजियों का उल्लेख पाणिनि और कौटिल्य दोनों ने किया है। महाभारत तथा पाली लेखों आदि के अनुसार भगों का राज्य वत्सों के राज्य से बिलकुल सटा हुआ और पूर्व और था (६३५ का नोट)। उनका केंद्र एक पहाड़ी गढ़ी (शिशुमार पहाड़ी) में था जो आधुनिक मिरजापुर जिले में अथवा उसके आसपास कहीं थी। (क) से (छ) तक के लिये देखो महापरिनिब्बान सुत्तन्त -२७, रहीस डेविड्स कृत Dialogues of the Buddha, पृ०२.१७६-६०. | Buddhist India पृ० २२-२३ । जातक, भाग ३, पृ०१५७. + Buddhist India. पृ० ८, १ और २२.