पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/१०७

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, ( ७६ ) 8 ४६. इन प्रजातंत्रों के शासन-विधान का ठीक ठीक वर्णन करने के लिये मैं यहाँ सब से अधिक उत्तम यही समझता हूँ कि रहीस डेविड्स का वह वर्णन उद्धृत उनका शासन-विधान कर दूँ जो उन्होंने शाक्यों के शासन- विधान के संबंध में दिया है, क्योंकि मेरी समझ में वैौद्ध साहित्य के संबंध में कुछ कहने के वही सब से बड़े अधिकारी हैं। प्रजा- तन्त्रीशासन-विधानों का मैंने विशेष रूप से अध्ययन कियाहै, इस- लिये केवल एक ही बात में मेरा इन बड़े विद्वान् से मतभेद है; और वह यह कि वे उनको clan या वर्ग कहते हैं, पर मैं उन्हे clan मानने के लिये तैयार नही हूँ। हमें जो प्रमाण मिलते हैं, उन्हें देखते हुए इन सव को clan कहना समुचित नही जान पड़ता . जैसा कि हम आगे चलकरबतलावेंगे, ईसवी छठी और सातवीं शताब्दी के भारतीय प्रजातंत्र समाज की असभ्य गोष्ठी वालो अवस्था से बहुत आगे बढ़ चुके थे। वे गण और संघ आदि राज्य थे जिनमें से संभवतः बहुत से राज्यों का संघटन राष्ट्रीय अथवा गोष्ठी के आधार पर हुआ था, जैसा कि सभी प्राचीन तथा आधुनिक राज्यों का हुआ करता है। प्रोफेसर रहीस डेविड्स कहते हैं:-"इस वर्ग की शासन और न्याय व्यवस्था (वास्तव में इन्हे clan नहीं बल्कि राज्य कहना चाहिए ) ऐसी सार्वजनिक सभाओं में हुआ करती थी जिसमें छोटे बड़े सव प्रकार के लोग उपस्थित हुआ करते .. Buddhist India; पृ० १६,