पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/१२

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( ५ ) प्रस्तावना (१९१३) में जा रेखाएँ अंकित की गई थीं, उन्हीं का प्रस्तुत ग्रंथ में ठीक ठीक अनुसरण किया गया है। एक पौर-जानपदवाले प्रकरण को छोड़कर उन रेखाओं में और किसी प्रकार की वृद्धि नहीं की गई है। बल्कि एक तरह से इस समस्त ग्रंथ को उसी प्रस्तावना का भाष्य कहना चाहिए। का समय अप्रैल १८१८में जिस रूप में यह ग्रंथ प्रस्तुत हुआ था, उसी रूप में यह उपस्थित किया जाता है। हॉ, पौर-जानपदवाला प्रकरण, जो लेखक ने अप्रैल १९२० में कौटिल्य अर्थशास्त्र 'माडर्न रिव्यू' में प्रकाशित कराया था, उसमे अभिधान राजेद्र (१९१६) के आधार पर ६२७, पृ० ४५ की पादटिप्पणी की अंतिम पंक्ति और परिशिष्ट ग तथा घ अवश्य बढ़ाए गए हैं। कौटिल्य अर्थशास्त्र का समय वही रक्खा गया है, जो पहले दिया गया था, यद्यपि डा० जोली ने अर्थशास्त्र के अपने संस्करण के कारण होनेवाले वाद-विवाद के आधार पर हाल में उसमे कुछ परि- वर्तन किया है। यह विषय महत्त्वपूर्ण था, इसलिये प्रस्तुत लेखक ने यहाँ उस पर फिर से विचार किया है। डा. जोलो ने जो परिणाम निकाले हैं, उनसे सहमत होने में वह असमर्थ है।

  • देखो परिशिष्ट ग; पहले खंड के अतिरिक्त नोट ।