पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/११०

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राजव्यवस्था ( ७६ ) राजव्यवस्था का प्रोफेसर रहीस' डेविड्स ने उल्लेख किया है, उसका विस्तृत विवरण बाद के एक ग्रंथ में दिया गया है जिसका नाम "अट्ठ कथा" है। उसमे राजा, लिच्छवियों की उपराजा और सेनापति इन तीन मुख्य अधिकारियों का उल्लेख है। इससे भी पहले के एक ग्रंथ ( जातक, १. पृ० ५०४ ) मे एक चौथे अधिकारी का भी उल्लेख है जो भांडागारिक था। इस बात मे किसी प्रकार का संदेह नहीं है कि ये चारों शासन विभाग के सबसे बड़े अधिकारी थे और इन्हीं चारों का सर्वप्रधान शासन- कारी मंडल होता था। जातक मे कहा गया है कि राजधानी वैशाली नगरी मे थी और उसमे तेहरे अथवा तीन प्रकार के बंधन होते थे। शासन ( रजम् ) अधिवासियों ( वसंता- नम् ) के हाथ मे था जिनकी संख्या ७७०७ थी और जिनमे से प्रत्येक शासक ( राजानम् ) होने का अधिकारी होता था। वही लोग सभापति या राजा (राजानो), उपसभापति या उप- राजा ( उपराजाना ), सेनापति (सेनापतिनो). तथा भांडा- गारिक होते थे। जातक का अभिप्राय यह जान पड़ता है बंगाल की एशियाटिक सोसायटी के जरनल, भाग ७ (१८३८) पृ. ६६३ में टर्नर का लेख । + तत्थ निच्चकालं रज कारेत्वा वसंतानं येव राजूनं सत्तसहस्सानि सत्तसतानि सत च । [.] राजाना हति तत्तका, ये व उपराजानो तत्तका सेनापतिना तत्तका, तत्तका भंडागारिका । जातक १.५०४.