पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/१११

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

(८०) कि ७७०७ अधिवासी, जो प्रायः मूल वंशो के होते होंगे, शासक वर्ग मे के होते थे । अर्थात् वही लोग थे जो शासन करनेवाले प्रधान अधिकारी हुआ करते थे (होति = होना)। कुल जनसंख्या बहुत अधिक थी जो बहिर्गत तथा अंतर्मुक्त दो विभागों में विभक्त थी। इन सब की संख्या १६८००० थो। गण राजाओं का भी राज्याभिषेक हुआ करता था। ६४८. अटु कथा में लिखा है कि वैशालीवाले जिस समय अपने संथागार में आते थे, उस समय उनके संथागार में घड़ियाल बजाया जाता था। इन शासकों की राजसभा में केवल राजनीतिक और सैनिक विषयों पर ही नहीं बल्कि कृषि तथा व्यापार संबंधी विषयों पर भी विचार और वादविवाद हुआ करता था। एक बौद्ध ग्रंथ मे इस बात का वर्णन है कि लिच्छवी गण ने अपने अधिवेशन मे एक महत्तक या प्रधान सदस्य को दूत के रूप में नियुक्त किया था और उसे यह काम सौंपा था कि तुम वैशाली के लिच्छवियो की ओर से एक संदेश पहुंचा • महावस्तु, त्रिशकुनीय जातक सेनट का संस्करण भाग १ पृ० २५६, २७१. महावस्तु और ललितविस्तर संभवतः ईसवी सन् १०० के रचे हुए है। वे पाली ग्रंथो के समान पुराने तो नहीं हैं, पर उनका आधार पुरानी दंतकथाएँ ही हैं। । देखो पृ० ७८ का दूसरा नाट (1)। 1 बंगाल की एशियाटिक सोसायटी के जरनल, भाग ७, पृ० १४-५ मे टनर का लेख ।