पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/११३

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(२) तीनों अलग अलग और एकमत होकर स्वीकृति नहीं देते थे, तब तक कोई नागरिक अपराधी नहीं ठहराया जाता था। सभापति के निर्णयों या फैसलों के पूरे पूरे लेख बहुत ही सावधानी से सरकारी दस्तावेजों मे ( पवेनि पत्थकान ) रखे जाते थे, जिनमे इस बात का उल्लेख होता था कि अमुक अप- राधी नागरिक ने कौन सा अपराध किया और उसे क्या दंड दिया गया। न्यायाधीशों ( विनिच्चय महामात्त) का एक खतंत्र न्यायालय होता था जिसमें मुकदमों की प्रारंभिक जॉच की जाती थी; और संभवतः इन्हीं में दीवानी तथा साधा- रण फौजदारी मुकदमों की सुनाई भी हुआ करती थी। जिस न्यायालय मे अपील हुआ करती थी, उसमें के न्यायकर्ता ( वोहारिक ) व्यावहारिक व्यवहार या कानून के ज्ञाता हुआ करते थे। सर्वप्रधान न्यायालय अथवा हाई कोर्ट के न्याया- धीश सूत्रधर कहलाते थे, जिसका अर्थ है व्यवहार शास्त्र के प्राचार्य । इन सब के ऊपर एक और काउंसिल हुआ करती थी जो अष्टकुलक कहलाती थी और जिसमें आठ न्यायकर्ता हुआ करते थे (देखो $५०)। ये सब न्यायालय क्रमशः नीचे- वाले न्यायालय से बड़े हुआ करते थे; और इनमें से प्रत्येक को इस बात अधिकार था कि वह किसी नागरिक को निर- पराध ठहराकर छोड़ दे। और यदि ये सब न्यायालय ... एशियाटिक सोसायटी बंगाल के जरनल, भाग ७, पृ० ६६३-१ में टनर का लेख।