पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/११४

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( ८३ ) किसी नागरिक को अपराधी ठहरा देते थे, तो भी उक्त कार्य- कारिणी सभा या काउंसिल के सदस्य उस पर पुनः विचार कर सकते थे और उसका उचित निर्णय कर सकते थे। 8 ५०. अठठकथा में अपराधियों के विचार का जो यह क्रम दिया हुआ है, वह उस क्रम या व्यवस्था के बिलकुल अनु- कूल है जो संस्कृत साहित्य में प्रजातंत्र के अपराधियों के विचार के संबंध में बतलाई गई है। महाभारत के कर्ता की सम्मति मे किसी प्रजातंत्र राज्य में अभियुक्तो के अपराधों का विचार प्रधान के द्वारा निग्रह पंडितो के हाथों होना चाहिए (निग्रहः पंडितैः कार्य: क्षिप्रमेव प्रधानतः) और कुल-न्यायालय अथवा कुल के वृद्धों से यह आशा नहीं की जाती थी कि वे किसी को अपराध करते देखकर उसकी उपेक्षा करेंगे अथवा चुप- चाप बैठे रहेंगे। भिन्न भिन्न न्यायकारियों या न्यायाधीशों का भृगु ने जो उल्लेख किया है, उससे यह संकेत निकलता है कि गण राज्य में निर्णय करनेवाली संस्था कुलिक और कुल कहलाती थी। कात्यायन ने कुल शब्द का व्यवहार जूरी के अर्थ मे किया है। ऐसी दशा में अष्ट-कुलक का अर्थ ... शान्तिपर्व, अध्याय १०७. २७ देखो भागे ६ १२६. वीरमित्रोदय, पृ० ११. देखो आगे चलकर पौरवाले प्रकरण दिया हुआ उद्धरण; प्रकरण २८ ६ २५५. 1 वणिग्भिः स्यात् कतिपयैः कुलभूतैरधिष्ठितम् । वीरमित्रोदय, पृ० ४१ में दिया हुआ उद्धरण ।