पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/११८

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सातवाँ प्रकरण अर्थशास्त्र में प्रजातंत्र (ई० पू० ३२५-३००) ६५३. कौटिल्य के अर्थशास्त्र में यह बतलाया गया है कि संघ-राज्यों की क्या विशेषताएँ हैं और उनके प्रति साम्राज्य की राजा की उपाधि नीति क्या होनी चाहिए। यद्यपि स्वतत्र धारण करनेवाले संघ- राजाओं द्वारा शासित होनेवाले बड़े बड़े राज्यों के स्थापित हो जाने तथा सिकंदर के आक्रमण के कारण उस समय तक संघों का पतन या हास होने लग गया था, तथापि उनका महत्व कम नहीं हुआ था। सिकंदर के आक्रमण के कारण लोगों ने समझ लिया था कि छोटे छोटे राज्यों से अब काम नहीं चल सकता और उससे बड़े बड़े राज्यों का महत्व तथा उपयोगिता सिद्ध होने लगी थी; पर फिर भी संघों का महत्व बिलकुल ही नष्ट नहीं हो गया था (६६४)। जैसा कि हम पहले बतला चुके हैं, कौटिल्य ने संघों को दो भागों में विभक्त किया है। उनमें से एक प्रकार के संघ वे थे जिनके शासक राजा की उपाधि धारण करते थे। संघों के दूसरे प्रकार को वह इस प्रकार के संघों के विपरीत बतलाता है, जिससे यह अभिप्राय निकलता है कि

  • ग्यारहरू प्रकरण, पृ० ३७६-७६ ।