पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/११९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( ८८ ) इस दूसरे प्रकार के संघों में शासकों के लिये राजा की उपाधि धारण करने का कोई नियम नहीं था और वे अपने शासकों को राजा की उपाधि नहीं धारण करने देते थे। सिकों से इस प्रकार के संघों के अस्तित्व का पता चलता है। पहले प्रकार के संघों में जिनके शासक राजा की उपाधि धारण करते थे, कौटिल्य ने नीचे लिखे संघ गिनाए हैं- १. लिच्छिविक २. वृजिक ३. मल्लक ७. पांचाल आदि। ४. मद्रक पाणिनि के ५. ३. ११४, वाले सूत्र के संबंध में काशिका में यह बतलाया गया है कि मल्लों के लिये इस सूत्र का व्यवहार नहीं होता, क्योंकि वे आयुधजीवी नहीं एकराजत्व से मजा- हैं।। अतः मलों की इस विशेषता के तंत्र में परिवर्तन संबंध में कौटिल्य और व्याकरण साहित्य का एक ही मत है। बौद्ध ग्रंथों से हमें पता चलता है कि लिच्छवी लोग अपने प्रधान शासक को राजा कहा करते थे। जान पड़ता है कि कौटिल्य ने लिच्छवियों का जहाँ देखो आगे सत्रहवें प्रकरण में राजन्यो, यौधेयों, मालवों और श्रार्जुनायनों के सिक्को के संबंध में विवेचन । t जीविग्रहणं किम् । मल्लाः । पृ० ४५६. + देखा ऊपर ६४७.