पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/१२०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( ८६ ) अलग वर्णन किया है वहाँ वृजी से उसका तात्पर्य केवल विदेहों से है। मद्रक और वृजिक के रूप बनाने के लिये पाणिनि ने एक विशेष सूत्र दिया है और अर्थशास्त्र में हमें उसी सूत्र के अनुसार बने हुए रूप मिलते हैं। बौद्ध लेखों आदि से हमें पता चलता है कि बुद्ध के समय मे कुरुओं का राज्य निर्बल हो गया था। महाभारत, पुराणों तथा दूसरे प्रारं- भिक ग्रंथों से हमे पता चलता है कि पहले कुरु लोग एक- राजत्व शासन के अधीन रहते थे। इसलिये उन्होने अवश्य ही बुद्ध के उपरांत तथा कौटिल्य से पहले अपनी एकराजत्व शासन प्रणाली छोड़कर प्रजातंत्रवाली शासन-प्रणाली ग्रहण की होगी। प्रारंभिक वैदिक काल में विदेह लोगों में भी एक- राजत्व शासन-प्रणाली ही प्रचलित थी। परंतु बुद्ध के समय में विदेहों ने भी प्रजातंत्र शासन-प्रणाली ग्रहण की थी। पतं- जति भी विदेहों को प्रजातंत्री ही मानकर चले हैं+। बौद्ध ग्रंथों में पंचाल लोग दो राज्यों में विभक्त लिखे मिलते हैं। परंतु कौटिल्य ने उन्हें प्रजातंत्री बतलाया है। पतंजलि ने भी उन्हें प्रजातंत्रो ही कहा है। उनकी शासन-प्रणाली

४.२. १३१. सद्रवृज्योः कन् ।

tीस डेविड्स कृत Buddhist India. पृ० २७.

  • ऐतरेय ब्राह्मण में एकराजत्व शासन प्रणालीवाली जातियो के

उदाहरण में कुरुत्रों और पांचालों के नाम दिए है। + देखो ऊपर ६३१ का नोट । प्र०८.१४.