पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/१२२

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प्रजातंत्रवाला स्वरूप नही रह गया था। हाँ, समय समय पर तिरहुत और नेपाल में ग्यारहवीं शताब्दी, बल्कि उसके बाद तक भी, मल्लों के भिन्न भिन्न वंश प्रबल हो उठते थे । मल्लों में से इस समय जो लोग अवशिष्ट हैं, वे गोरखपुर तथा आजमगढ़ के जिलों में मल्ल जाति के नाम से बसे हुए हैं। और साधा- रणतः व्यापार प्रादि करके अपना निर्वाह करते हैं। सभी भारतीय प्रजातंत्री जातियों के जीवन में साधारणतः यह बात पाई जाती है कि राजनीतिक बल नष्ट हो जाने पर भी उनमें व्यापार- बुद्धि बची रह गई और वे लोग व्यापारी हो गए। पंचाल लोग मौर्यों के उपरांत भी बचे रह गए, क्योंकि पतंजलि ने उनका उल्लेख किया है। पर उस समय तक कुरुओं का राज्य नहीं रह गया था। महाभारत के अनुसार कुकुर लोग अंधक-वृष्णी के संयुक्त संघ का एक अंग थे। इस संघ या लीग के कुछ सदस्य तो, जान पड़ता है, राजशब्दोपजीवी थे और कुछ नहीं भी थे । पश्चिमी भारत के ईसवी पहली शताब्दी के अंत के शिलालेखों मे कुकुरों का उल्लेख मिलता है+ ।

  • देखो लेवी कृत Le Nepal. भाग २ पृ० २१०.१३

+मिलाओ हरिनंदन पांडेय, J. BORS. १९२०. पृ. २६२. ६५. आधुनिक मल्लों के संबंध में ।

  • दूसरे उदाहरण सिंध तथा पंजाब के खत्रियों के (जिन्हें यूनानियों

ने Xathroi लिखा है) तथा पंजाब के अरोड़ों के हैं जो संभवतः प्राचीन अरहों के वंशज हैं। + एपिग्राफिया इंडिका, भाग ८, पृ०४४.६०. देखो १५७ का नोट 1