पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/१२३

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(ER) ६५५. कौटिल्य ने प्रजातंत्रों के दूसरे विभाग के उदाहरण स्वरूप जो नाम दिए हैं, वे इस प्रकार हैं*. १. कांभोज श्रायुधजीवी संघ २. सुराष्ट्र - ३. क्षत्रिय ४. श्रेणी आदि। ध्वनि यही निकलती है कि इस प्रकार के संघों का प्रधान शासक राजा की उपाधि नहीं धारण करता था। इस प्रकार की शासन-प्रणाली की दूसरी मुख्य विशेषता यह थी कि इसमें नागरिकों का यह प्रधान कर्चव्य माना जाता था कि वे युद्ध-विद्या में निपुणता प्राप्त करें। ऐसे राज्यों के सभी निवासी योद्धा हुआ करते थे। इसके विपरीत संघों का जो दूसरा वर्ग या विभाग था और जिसमें प्रधान शासक राजा की उपाधि धारण करता उसमें कदाचित् 'एकराज' राज्यों की भॉति वेतनभोगी स्थाया सेना रहा करती होगी। पर फिर भी आयुधजीवी संघो के समस्त नागरिकों को केवल योद्धा ही नहीं बन जाना पड़ता था, बल्कि उन्हे शिल्प और कृषि की ओर भी ध्यान देना पड़ता था (वाशिस्त्रोपजीविनः)। इसी लिये वे लोग धनवान भी होते थे और बलवान् भी। था, काम्भोज-सुराष्ट्र-क्षत्रिय-श्रेण्यादयो वाशिस्त्रोपजीविनः (अर्थ० ११, १.१६०, पृ० ३७६.)