पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/१२४

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(६३ ) ६ ५६. क्षुद्रकों और मालवों का, जो इन आयुधजीवी संघों या प्रजातत्रों में सर्व-प्रमुख थे, कौटिल्य ने कोई उल्लेख नहीं किया है। संनवत: वे लोग उस समय तक साम्राज्यों की छाया में आ गए थे। अर्थशास्त्र में प्रायुधजीवी संघों में सब से पहले कांभोज का नाम आया है। वे लोग पूर्वी अफगानिस्तान मे थे। अशोक के शिलालेखों में उनका उल्लेख गंधारों के उपरांत आया है। यास्क के अनुसार उनकी मातृभाषा संस्कृत थी, पर उसमे कुछ तत्व ऐसे भी थे जो, जान पड़ता है कि उन्होंने अपने ईरानी पड़ोसियों से ग्रहण किए थे। पाणिनि उनसे भी परिचित था, क्योंकि उसने उनके राजा का बोधक रूप बनाने के लिये सूत्र दिया है। इससे यह सूचित होता है कि पाणिनि का कथन एकराज-शासन-प्रणाली के संबंध में है। परंतु इस विशिष्ट सूत्र तथा नाम के अपवादात्मक रूप से यह संदेह होता है कि कांबोजों मे जो राजा होता था, वह एकराज होता था अथवा निर्वाचित शासक होता था। कौटिल्य के समय में उनकी शासन-प्रणाली अवश्य ही ऐसी नहीं थी ... देखो श्रागे प्रकरण १७ । +२ , ३ ४ शवतिर्गतिकर्मा कंबोजेष्वेव भाष्यते, कंबोजाः कंबलभोजाः कमनीयभोजा वा कंबलः कमनीयो भवति विकारमस्यायेंषु भाषते शव इति । मिलाओ फारसी की धातु शुदन जिसका अर्थ जाना होता है। देखो J RAS. ११.११.८०१

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