पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/१२७

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(६ ) सिंधी खत्री (सिंध के खत्री) कहलाते हैं। इस जाति के लोग सुदर होते हैं और उसी स्थान के आसपास पाए जाते हैं, जिसे यूनानी लेखकों ने Xathroi जाति का निवासस्थान बतलाया है। पंजाब के खत्रो भी उन्हों के वंशज हो सकते हैं। ६५६. हम यहाँ पर यह भी बतला देना चाहते हैं कि अर्थशास्त्र के अनुवादक ने 'काम्भोज-सुराष्ट्र-क्षत्रिय-श्रेण्यादयः' पद का “कांभोज, सुराष्ट्र तथा दूसरे देशों के योद्धाओं (तत्रिय श्रेणी) की समितियाँ" अनुवाद करने मे भूल की है। यह अनुवाद व्याकरण की दृष्टि से ठीक नहीं है। आदयः या आदि शब्द जिस वर्ग के अंत में आता है, उससे ठीक पहले- वाले वर्ग में उसका कोई विवरण नहीं हो सकता। विवरणा त्मक शब्द सदा आदयः या आदि के बाद आवेगा। यदि कांभोज व्यक्तिवाचक संज्ञा है, तो उसके बाद से लेकर प्रादयः तक के सभी नाम व्यक्तिवाचक होने चाहिए। परंतु वास्तव में बात यह है कि जब सब नाम गिनाए जा चुकते हैं, प्रादयः शब्द आता है और उसके उपरांत उसका विवरणा- त्मक "वाशिस्त्रोपजीविनः" पद पाता है। परंतु नामों के संबंध में हमने जो निर्धारण किया है, उसे देखते हुए भी और व्याकरण की दृष्टि से भी उक्त अनुवाद ग्राह्य नहीं हो सकता। इसके अतिरिक्त यहाँ दूसरी भूल यह है कि श्रेणी का अर्थ • शाम शास्त्री, कौटिल्य का अर्थशास्त्र, पृ० ४५५. तब