पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/१४३

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(११२) (कर्टियस भाग ६. अ०७.) सिकंदर ने उन लोगों की ऐसी दावत की जिसमें शराब की नदियाँ बहीं और तब "सब दूत अपने अपने स्थान के लिये बिदा कर दिए गए" (अ०८)* | यह वर्णन वैसा नहीं है जैसा किसी पराजित या कुचली हुई सेना का होता है, बल्कि एक ऐसी जाति का जान पड़ता है जिसकी वीरता की अच्छी तरह परीक्षा कर चुकने के उपरांत जिनके अधीनता स्वीकृत करने का सिकंदर ने आदर और स्वागत किया था। इस परावर्तन में सिकंदर को केवल अपना पश्चा- द्भाग ही सुरक्षित नहीं रखना पड़ा था, बल्कि ,विद्रोही' मैसिडो- नियावालों में विश्वास उत्पन्न करके उन्हें शांत करना पड़ा था। ६७. कात्यायन के वार्त्तिक तथा पाणिनि के 'खंडिका- दिभ्यश्च' (४. २. ४५ ) के पतंजलि के भाष्य से यह बात प्रमाणित होती है कि इन दोनों का द्वंद्व कात्यायन के समय से भी पहले मौजूद था। हॉ, पाणिनि के समय में यह द्वंद्व नही था; क्योंकि उसने इन दोनों की संयुक्त सेना के नाम का रूप बनाने का कोई नियम नहीं दिया है। कात्यायन ने इसके लिये भी एक नियम बना दिया; और इस प्रकार उसने अपने समय में जो त्रुटि पाई, वह दूर कर दी। पतंजलि ने इन दोनों का जो संयुक्त नाम पाया या सुना था, वह उसने गण- पाठ मे दे दिया; क्योंकि वह कहता है-'क्षुद्रकमालवशब्दः खंडिकादिषु पठ्यते' अर्थात् “खंडिका वर्ग में क्षुद्रक मालव शब्द मैकिंडल कृत I. I. A. पृ० २४८-५१.