पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/१४५

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(११४) ६६८. सर्टियस का कथन है कि इन दोनों की संयुक्त सेना का संचालन करने के लिये क्षुद्रकों में से एक वीर चुना गया था और वह एक अनुभवी सेनापति था (भाग. प्रक० ४.)। उत्सुक हो, उनके सुभीते के लिये यहाँ उसका पूरा उद्धरण दे दिया जाता है। इन सब बातों से अंतिम परिणाम यही निकलता है कि यद्यपि क्षुद्रक और मालव लोग पाणिनि के समय से पहले मौजूद थे, तथापि पाणिनि से पहले उन दोनों का द्वंद्व संबंध नहीं हुआ था; और कात्या- यन तथा पतंजलि के समय में इन दोनों का द्वव विलकुल जीवित दशा में उपस्थित या प्रचलित था। इस प्रकार इससे यह भी जान पड़ता है कि इन दोनों का द्वंद्व या संघटन मौर्य साम्राज्य के वाद तक भी चलता रहा। खण्डिकादिभ्यश्च ॥ ४ । २ । ४५ ॥ "अनसिद्धिरनुदात्तादेः कोऽर्थ चद्रकमालवात् ।" अनुदात्तादेरित्येवासिद्धः किमर्थं चुद्रकमालवशब्दः खण्डिकादिषु पठ्यते । गोत्राश्रयो वुजप्राप्तस्तद्वाधनार्थम् ।। "गोत्रावुञ् न च तद्वोत्र" गोत्रादुञ् भवतीत्युच्यते न च क्षुद्रकमालवशब्दो गोत्रम् । गोत्रसमुदायो गोत्रग्रहणेन गृह्यते । तद्यथा । जनपदसमुदायो जनपद- ग्रहणेन न गृह्यते । काशिकोसलीया इति वुन न भवति । तदन्तविधिना प्राप्नोति । "तदन्तान स सर्वतः ॥ १॥" परिगणितेपु कार्येषु तदन्तविधिर्न चेदं तत्र परिगण्यते ॥ "ज्ञापकं स्यात्तदन्तत्वे" एवं तहि ज्ञापयत्याचार्यों भवतीह तदन्तविधिरिति ।। "तथाचापिशलेविधिः।"