पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/१४६

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( ११५) यह बतला देना भी आवश्यक और महत्वपूर्ण जान पड़ता है कि सिकंदर के साथ संधि स्थापित करने के लिये इन दोनों प्रजातंत्रों से जो दूत आए थे, वे कौन और कैसे लोग थे। ये लोग अपने अपने नगर और प्रांत के प्रतिनिधि स्वरूप तथा मुखियाओं में से थे। “ौकजैड्रकियों में से उनके नगरे के अग्रगण्य लोग तथा उनके प्रांतीय शासक लोग आए थे* " उन लोगों को "संधि स्थापित करने का पूरा पूरा अधिकार दिया गया था।" कहा जाता है कि मल्लोइयों के प्रतिनिधियों ने एवं च कृत्वापिशलेराचार्यस्य विधिरुपपन्नो भवति । धेनुरनजि कमुत्पादयति। धेनूनां समूहो धैनुकम् । अनजीति किमर्थम् । अधेनूनां समूह श्राधेनवम् ॥ "सेनायां नियमार्थ वा" अथवा नियमार्थोऽयमारम्भः । तुद्रकमालवशब्दारसेनायामेव । क मा भूत् । क्षौद्रकमालवकमन्यदिति ॥ "यथाबाध्येत वाजवुजा अथवा ज्ञापयत्याचार्यः पूर्वोऽपि वुञ्परमनं बाधत इति । ननु चोक्त गोत्रावु न च तद्गोत्रमिति । तदन्तविधिना प्रामोति । ननु चोक्तं तदन्तान स सर्वत इति । ज्ञापकः स्यात्तदन्तत्वे । एवं तहि ज्ञापयत्या- चार्यो भवतीह तदन्तविधिरिति । कथं पुनरेतदुभयं शक्यं ज्ञापयितुं भवति च तदन्तविधिः पूर्वश्च वुञ्परमनं बाधत इति । उभय ज्ञाप्यते ॥ अप्रकरणे तुद्रकमालवात्सेना संज्ञायाम् ॥ १॥ अजप्रकरणे चद्रकमालवात्सेनासंज्ञायामितिवक्तव्यम् । चौद्रकमालवी सेना चेत् । क मा भूत् । चौकमालवकमन्यदिति ॥

- एरियन भाग ६. प्रक० १४. मैक्किंडल कृत Alexander

पृ० १५४. ॥२॥"