पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/१५५

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(१२४) राजनीतिक दृष्टि से सर्वथैव स्वतंत्र हो और जो किसी के अधीन न हो। यूनानी लोग राज्य और विशः को इतना एक मानते हैं कि उसके कारण वे प्रत्येक राज्य के नागरिकों को विशः ही मान बैठते हैं। सिंध और पंजाब के सभी स्वतंत्र नगरों और राज्यों के संबंध में उन्होंने ऐसा ही किया है। परंतु इन राज्यों के समय के भारतीय लेखक आदि इन्हें जनपद या देश आदि कहते हैं, जैसा कि पाणिनि ने लिखा है (४. १. १६८-१७७.)। तात्पर्य यह कि भारतीय लोग अपना विभाग आदि देश या सीमा के विचार से किया करते थे, विशः ( वर्ग या tribe) के विचार से नहीं । इस छोटे से प्रजातंत्र ने बहुत अधिक उत्साह और देश- प्रेम प्रकट किया था; और सिकंदर ने इससे विशेष रूप से बदला चुकाने का मन में दृढ़ संकल्प किया था। प्लूटार्क ने सिकंदर के जीवनचरित्र (५८) में ब्राह्मणों ( मैककिंडल कृत I. L. A पृ० ३०६) के नगर का उल्लेख करते हुए कहा है कि "केवल धन के लोभ में पड़कर लड़नेवालों ने सिकंदर को जितना अधिक कष्ट दियाथा, उससे कम कष्ट इन दार्शनिकों ने उसे नहाँ दिया था; क्योंकि जो राजा लोग सिकंदर की अधीनता स्वीकृत करके उसके पक्ष में चले जाते थे, उन राजाओं की ये लोग बहुत अधिक निंदा करते थे और स्वतंत्र राज्यों को सिकंदर के विरुद्ध विद्रोह करने के लिये उसकाते थे। इसी कारण सिकंदर ने इन लोगों में से बहुतों को फॉसी दिलवा दी थी।" >