पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/१६१

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( १३०) की शासन-प्रणाली ही ऐसी थी जिसमें किसी एक आदमी पर या थोड़े से आदमियों पर इतने बड़े कार्य का भार सौंपा ही नहीं जा सकता था। यहाँ यह वात भी ध्यान रखने की है कि इन दोनों की सेनाओं ने मिलकर अपने लिये एक ही सेना- पति भी चुना था। ८२. कथइयों या कठों को शासन-प्रणालो को देखने से हमे पता चलता है कि उन लोगों में निर्वाचित राजा हुआ करता था। इस राज्य मे माता पिता के निर्वाचित राजा- यहाँ जो बच्चे उत्पन्न होते थे, वे मुख्यतः सभापति नागरिक समझे जाते थे और उनकी व्यक्तिगत सत्ता गौण होती थी। राज्य इस बात का निर्णय किया करता था कि कौन से बच्चे हाथ-पैर और सूरत-शकल के लिहाज से ठीक और पूर्ण हैं और उनमें से किन्हें बड़े होकर मनुष्य होने देना चाहिए (डायोडोरस ६१.)। सौभूतों की शासन-प्रणाली भी इसी प्रकार की थी। वास्तव में इन राज्यों मे मनुष्य एक राजनीतिक पशु अथवा जीव मात्र ही समझा जाता था। व्यक्ति की सत्ता केवल राज्य के लिये होती थी। समूह के जीवन की रक्षा के लिये व्यक्ति को अपने पिता अथवा मातावाले अधिकारों और भावों का बलिदान अथवा परित्याग करना पड़ता था। एक कथा है कि एक बालक (नचिकेता) को उसके पिता ने मृत्यु के अर्पित कर दिया था; और कठ दार्श- निकों ने यह कहकर उस बालक की कीर्ति वढ़ाई थी कि अब