पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/१६२

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( १३१) यह बालक अमर हो गया। उन लोगों का यह कथन कदा- चित् इसी कानून के कारण था। वह शासन-प्रणाली, जिसमें राजा-सभापति का निर्वाचन होता था और जो उदाहरण स्वरूप पटलों में प्रचलित थी, वही शासन-प्रथाली थी जिसे कौटिल्य ने 'राजशब्दिन् संघ' कहा है और जिसका अभिप्राय है-वह प्रजातंत्र जिसमें राजन् या राजा की उपाधि धारण की जाती है। लिच्छवियों में भी इसी प्रकार के निर्वाचित राजा हुआ करते थे। यह

- कदाचित् कुणिंदो मे भी इसी प्रकार की शासन-प्रणाली

प्रचलित थी । इस राज्य के सिके राजा और राजनीतिक समाज दोनों के नामों से अंकित होते थे। उन सिक्को में उनका राजा सदा अमोघभूति लिखा जाता था, जिसका अर्थ है-अमोघ विभूतिवाला । उनमें यह विशेषण कई शताब्दियों तक(ई० पू० १५० से ई० प० १०० तक) बरा- बर मिलता है। यह एक राजकीय उपाधि थी, व्यक्तिगत नाम नहीं था। मुद्रा-विज्ञान के ज्ञाताओं ने इसे व्यक्ति का नाम समझकर भूल की है (देखो विन्सेन्ट स्मिथ C.C.I.M भाग १, पृ० १६१, १६७)। कौलिंदों (कहीं कहीं कौणिंद भी लिग्वा मिलता है) के गण के नेताओं का उल्लेख वराहमिहिर ने भी किया है। बृहत्संहिता ४. २४. (कौलिंदान् गण- पुंगवान्)। १४.३०, ३३. टालेमी ने कुलिडूिन का उल्लेख किया है। विष्णुपुराण में कुलिंद और मार्कंडेयपुराण में कौलिंद का नाम पाया है। कनिंघम C. A. I. ७१। इनके सिक्के अंबाले और सहारनपुर के बीच में पाए जाते हैं। कुछ लोगो का कथन है कि ये लोग शिमला पहाड़ियों के रहनेवाले कुणेत (कनेत होना चाहिए ) हैं (A S.R.६४ पृ० १२६.); पर ठीक नहीं जान पड़ता और इसमें कुछ संदेह होता है।