पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/१६३

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( १३२ ) आवश्यक नहीं था कि निर्वाचित राजा ही सेना का भी संचा- लन करे अथवा सेनापति भो हो। लिच्छवियों में सेना का अधिकार एक दूसरे निर्वाचित व्यक्ति को प्राप्त होता था जिसे सेनापति कहते थे। शाक्यों की शासन-प्रणाली में भी निर्वा- चित राजा-सभापति हुआ करता था। १८३. पटलों की शासन-प्रणाली में वृद्धो या ज्येष्ठों की सभा शासन का कार्य किया करती थी। उनमे इस प्रकार के दो निर्वाचित राजा हुआ करते थे। ये दोनों दो भिन्न भिन्न कुलों के होते थे। इनका अधिकार वंशानुक्रमिक हुआ करता था और ये लोग केवल युद्ध के समय सेना-संचालन का ही काम किया करते थे। महाभारत में भी इस बात का उल्लेख है कि प्रजातंत्रों मे वंशानुक्रमिक राजकुल हुआ करते थे * । पटलों के राजा काउंसिल के सामने उत्तरदायी हुआ करते थे; और काउंसिल का चुनाव संभवतः सारा समाज या राज्य के सब लोग किया करते थे और इसी का नाम प्रजा- तंत्र है। यहाँ पटलों की शासन-प्रणाली में प्रजातंत्र और राजतंत्र दोनों का सम्मिश्रण दिखाई देता है। इन सभी प्रव- स्थाओं में अंतिम या मुख्य राजनीतिक अधिकार गण अथवा संघ को ही प्राप्त होता था। 8८४. इन प्रजातंत्रों मे से कुछ में तो यह व्यवस्था थी कि शासन कार्य का पूरा अधिकार वृद्धों अथवा ज्येष्ठों की सभा १. देखो आगे चौदहवां प्रकरण ।