पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/१६४

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(१३३ ) अथवा मंडल को सौंप दिया जाता था; और कुछ की शासन- प्रणाली में इस बात के भी लक्षण मिलते हैं कि वह सार्व- जनिक गण अथषा पार्लिमेंट के ही शासनाधिकार हाथ में रहता था। यूनानी लेखकों के कथनानुसार पटलो में वृद्धों या ज्येष्ठों की सभा को ही सब प्रकार के अधिकार प्राप्त थे और अंबष्ठ लोग अपने वृद्धों के परामर्श पर ध्यान दिया करते थे। महाभारत में कहा गया है कि गण शासन-प्रणाली में सब से बड़ी कठिनता मंत्रों या निश्चयों को गुप्त रखने के संबंध मे होती है, क्योंकि उनकी संख्या अधिक होती है। इसी लिये उसमें यह कहा गया है कि नीति संबंधी बातों (मंत्रों) पर समस्त गण को विचार नहीं करना चाहिए; और राज्य की नीति नेताओं या प्रधानों के ही हाथ में रहनी चाहिए। यौधेयों के एक प्रकार के सिक्के ऐसे मिले हैं, जिन पर मंत्रधरों और गण दोनों के नाम अंकित हैं; और दूसरे प्रकार के सिक्के ऐसे मिले हैं जो केवल गण के ही नाम से अंकित हैं। मत्रधर से अभिप्राय उस काउंसिल के सदस्यों से है जिसे मंत्र अथवा नीति निर्धारित करने का अधिकार प्राप्त होता था। यही लोग गण के प्रधान या नेता कहलाते थे और इन्हीं का समूह कार्यकारी मंडल अथवा मंत्रिमंडल कहलाता था। दूसरा मंडल वृद्धों या ज्येष्ठों का हुआ करता था। यह मंडल ठीक उसी प्रकार का होता - देखो आगे चौदहवां प्रकरण ।