पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/१६५

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( १३४ ) था जिस प्रकार के मंडल आजकल पाश्चात्य देशों में हुआ करते हैं। भिन्न भिन्न शासन-प्रणालियों मे इस दूसरे मंडल के भिन्न भिन्न अधिकार हुआ करते थे। पटलों में शासन-संबंधी कुल कार्य यही वृद्ध या ज्येष्ठ लोग किया करते थे। परंतु अंबष्ठ संघ मे उन लोगों को इतने अधिक और विस्तृत अधिकार नहीं प्राप्त थे। वे महाभारत में उल्लिखित वृद्धों के ही समान थे, जो पारस्परिक नियंत्रण और उचित आचरण आदि के संबंध में ही परामर्श दिया करते थे (देखो चौदहवॉ प्रकरण)। यह आवश्यक नहीं था कि वृद्ध लोग अवस्था मे भी बहुत बड़े ही हों; पर हॉ फिर भी अवस्था काथोड़ा बहुत ध्यान अवश्य रहा करता होगा। महाभारत में कहा गया है कि "मनुष्य ज्ञान से वृद्ध होता है" जिसका अभिप्राय योग्यता से ही है। तात्पर्य यह कि वृद्धों का चुनाव योग्यता के ही विचार से हुआ करताथा। महाभारत में इस विषय का जो विवेचन किया गया है, उससे यह ध्वनि निकलती है कि कुछ गण या पार्लिमेटें ऐसी भी होती थी जो शासन-नीति स्थिर करने का कार्य अपने ही हाथ मे रखती थीं और अपना यह अधिकार काउंसिल या मंत्रधरों के मंडल को नहीं सौंप देती थी क्योंकि उसमें यह कहा गया है कि मंत्रघरों को यह अधिकार सौंप देना गण शासन- प्रणाली के दोपों में से एक है। संभवतः मंत्रधरों को शासनाधिकार सौंप देने की अपेक्षा उन्हें अधिकार सौंपने की ओर ही उन दिनों विशेष प्रवृत्ति थी और इसी की विशेष प्रथा