पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/१६८

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(१३७ ) ६८६. यूनानियों ने यहाँ पाँच हजार सदस्यों का गण या पार्लिमेट देखी थी। पर यह बात नहीं है कि भारतीय साहित्य में इस प्रकार के अथवा इतने अधिक सदस्यों- बड़े बड़े गणों की समता के और गण न वाले बड़े गण मिलते हो। जातकों में कहा गया है कि लिच्छवियों की राजधानी वैशाली मे ७७०७ ऐसे उपाधिधारी राजा या राजुक थे। इस प्रकार के शासक धनवान् भी होते थे और दरिद्र भी, और ये लोग आहूत होने पर धर्म-सभा मे आकर उपस्थित हुआ करते थे। परंतु जिस प्रकार आजकल की पार्लिमेटों में सभी सदस्य आकर उपस्थित नहीं होते, उसी प्रकार जान पड़ता है कि उस समय इन गणों में भी सभी सदस्य आकर उपस्थित नहो होते थे। ८७. गण में जो इस प्रकार का राजतंत्री तत्व होता है, उसे हिन्दू साहित्य में कुल कहते हैं * जिसका शब्दार्थ है- वंश। महाभारत मे भी राजाओं के कुलों राजतंत्री शासन के को गण के वर्ग के अंतर्गत ही माना लिये हिंदू नाम है। अर्थशास्त्र में इन राजकुलों या शासक-कुलों को संघक धर्मवाला (संघधर्मिन् पृ० ३२८.) कहा है। पटलों के जो वंशानुक्रमिक राजा हुआ करते थे, वे इसी कुल

नारद १.७. पर टीका करते हुए असहाय न कुल की व्याख्या मे

लिखा है कि उसका शासन या व्यवस्था थोडे लोगो के द्वारा होती थी (कुलानि कति हीतानि)। इस गृहीतानि शब्द के लिये मिलाओ प्रग्रह क्रिया, जिसका अर्थ 'पकड़ना है।