पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/१६९

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(१३८ ) संघ की व्याख्या के अंतर्गत आ जायेंगे। धर्म-शाखों में कुल सदा गणों से भिन्न समझे जाते हैं और उनमें दोनों का उल्लेख प्रायः साथ ही साथ होता है। इसलिये हम कह सकते हैं कि गण का जो शुद्ध और वास्तविक रूप होता था, उसमें कोई वंशानुक्रमिक सिद्धांत सम्मिलित नहीं था। वह वस्तुतः प्रजातंत्र के ही ढंग का था और उसी सिद्धांत पर उसकी सृष्टि हुई थी। प्रायः दोनों का संमिश्रण हो जाया करता था और शुद्ध कुल बहुत ही कम पाए जाते थे। परवर्ती काल में इस भेद की उपेक्षा भी होने लग गई थी। जैनों ने अपने धार्मिक गणो की सृष्टि तो की ही थी, साथ ही साथ अपने धार्मिक कुलों की भी सृष्टि की थी। परंतु उनका इसे 'कुल' कहना ठीक नहीं था, क्योंकि इसका निर्माण करनेवाले केवल बड़े बड़े और प्रसिद्ध लोग ही थे और इसमे किसी वंशानुक्रमिक सिद्धांत का अनुसरण नहीं हो सकता था। शुद्ध कुल-राज्यों मे प्रधान शासनाधिकार क्रमश: जाता जाता थोड़े से वंशों के अधिकार मे चला गया था ( कुलेसु पच्छेकाधिपच्छम् +)। वीरमित्रोदय पृ० ११ और ४० के उद्धरण । | कात्यायन-कुलानां हि समूहस्तु गणः संप्रकीर्तितः। (वीर- मित्रोदय पृ० ४२६ ) "कुलों का समूह ही गण कहलाता है।"

  • इण्डियन एन्टिक री भाग २०. पृ० ३४७. डाकर

हॉर्नली द्वारा संपादित पट्टावलियाँ । +अंगुत्तर निकाय ५८. १ (भाग ३. पृ० ७६.)। साथ ही देखो 86 का विवेचन ।